MY BEST BROTHERS. TARUN JI , DHEERAJ JI, ROHIT JI

मम प्रिय मित्राणि ..तरुण: , धीरज:, रोहित: । मकर संक्रांति पर्वणि मित्र रोहितस्य गृहे भोजनम् अकुर्वन् । आंनदस्य दिवसंं आसीत्। ऐतत् दिनंं तु अविस्मरणीय अस्ति । जय श्री राम:🙏 ।.....निःस्वार्थ प्रेम .....। जब भी प्रेम की बात आती हे, हम सबसे पहले मन मे एक नायिका और एक नायक का चित्रण कर लेते हे । क्यों आपके साथ भी यही होता हे ना, पर क्या प्रेम केवल नायक-नायिका के आकर्षण का बंधन हे , नही, प्रेम तो परिवार से हॊ सकता हे , माता-पिता भाई-बहिन से हॊ सकता हे , सखा -मित्रो से हॊ सकता हे , देश और जन्मभूमि से हॊ सकता हे , मानवता के लिए हॊ सकता हे, किसी कला के लिए हॊ सकता हे। इस प्रकृति के लिए हॊ सकता हे । परंतु प्रेम उस पन्ने पर लिखा ही नही जा सकता जिस पर पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका हे । जेसे एक भरी मटकी मे और जल आ ही नही सकता ! यदि प्रेम को पाना हे तो मन को खाली करना होगा । अपनी इच्छाए अपना सुख सब त्याग कर समर्पण करना होगा । अपने मन से व्यापार हटाये तभी प्यार बढ़ेगा । और तब मन प्रफुल्लित होकर बोलेगा ...