जय जय है भगवती सुर भारती-अशोक कुमार

जय जय हे भगवती

जय जय हे भगवती सुरभारती तव चरण प्रणामः । नादब्रह्ममयी जय वागीश्वरि शरणं ते गच्छमाः त्वमसि शरण्या त्रिभुवनधन्य सुर-मुनि-वन्दित-चरणना नर्वसधुरा कवितामुखरा स्मित-रुचि-रुचिराभरना आने भव मान सहंसे कुन्द-तुहिन-शशि-धवले हरजदं कुरु विकासंविकास सीत-पंकज-तनु-विमले ललितकलामयी ज्ञानविभामयी वीणा-बुक-धारिणी मतिरस्तां नो तवमले अयि कुण्ठाविषहारिणी
20-05-2021
मम गृहे अस्मि।

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